उपन्यास >> अनित्य (अजिल्द) अनित्य (अजिल्द)मृदुला गर्ग
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
"अनित्य" प्रतिबोध तक पढ़ा है। "अविजित" जैसा, सभ्य शिष्ट जीवन का सही सांगोपांग चित्र शायद ही कहीं और मिले।
जैनेन्द्र
याद रही किताबों में सबसे पहला नाम लेना चाहूँगा मृदुला गर्ग के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपन्यास "अनित्य" का। केन्द्रीय बिम्ब है उसका पहाड़ों में उगा लम्बा शानदार देवदारु जो धीरे-धीरे कमजोर पड़ता जा रहा है और एक दिन जड़ से उखड़कर गिर पड़ता है। देवदारु प्रतीक है उस संस्कारवान व्यक्तित्व का जो राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान उभरा था। वह समझौतो के खिलाफ था। लेकिन इन समझौतावादियों की जो कुटिल दोमुंही संस्कृति आजादी पाने के बाद उभरी, उसने धीरे-धीरे उन क्रान्तिकारी मूल्यों को छिन्न-भिन्न कर दिया, जिनता प्रतीक भगतसिंह का "इंकलाब जिंदाबाद" था। इस सारी प्रक्रिया को एक मध्यवर्गीय परिवार की कथा में पिरोकर मृदुला गर्ग ने जितने मार्मिक, प्रामाणिक और कलात्मक ढंग से अपने इस उपन्यास में रखा है, वह सचमुच बहुत प्रभावशाली है।
-धर्मवीर भारती
"अनित्य" सचमुच अनित्य है। क्या कथाशिल्प है, भूत को वर्तमान में लाकर कैसे हमारा बनाया जाता है, यह मंत्र दिया है। "दुविधा" से भी आगे "प्रतिशोध" और सशक्त है। कथा में विचार कैसे किस रंग और अनुपात में आता है, यह अविस्मरणीय रहेगा।
-लक्ष्मी नारायण लाल
मृदुला का लेखन परम्परावादी नहीं है। जितना सशक्त लेखन मृदुला ने किया है, हिन्दी में वैसा लेखन कोई नहीं कर रहा। बहुत अद्भुत लेखन है, अपने ढंग का एकदम अकेला। "अनित्य" के सभी पात्र मेरे परिचित होने पर भी अपरिचित लगते हैं। यूँ तो पूरा मध्यवर्गीय परिवेश है मगर पात्र स्टारियोटिपिकल नहीं है। वे ऐसे लिखती हैं, तटस्थ भाव से, कहीं जजमेंटल नहीं हैं, कोई निर्णय नहीं देतीं, नैतिकता का प्रश्न नहीं उठातीं। इतना काजुअल स्टाइल है कि वैसे लिखती हैं जैसे बोल रही हों।
मनोहर श्याम जोशी
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